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व्रज गोपिया रोस भराए || hindi poetry,




बाल सखा कृष्णे संग 

नित उधम मचाये 

देख गोपी की मटकिया 

फोड़ने को कंकर उठाये 

गोपी नज़र पड़ते ही

छिपन को भागे सखा 

देख मौका कृष्ण 

मटकी फोड़ जाय 

फिर ढूढे गोपिया कृष्ण वन वन 

नित नित मटकी फूटने पर 

कान्हा से तंग गोपिया 

 माँ यशोदा से मिलने आई

 गोपिया शिकायत लगाये

देख इतनी सारी गोपिया को 

माँ यशोदा  दंग रह गई 

आज कोंसो उधम कर यो लाला 

माँ यशोदा सोच में पड गई 

व्रज गोपी करने लगी शोर 

कहा है तेरो कान्हा है चोर

नीत माखन चुराने को 

मटकी दे फोड़ 



आज उको ना छोडेगे

हर एक मटकी का 

आज उधार चुकाएगे   

माँ यशोदा के पीछे छुपकर

गोपीयो को निहार रहे माधव 

आज ना छोड़ेगी गोपिया 

कैसे इन्हें रिजाऊ 

                         Radhe...


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