बहोत हुवा अब कोई उमींद नही बची मुजमे 



बहोत हुवा अब कोई उमींद नही बची मुजमे 

नहीं कोई रंग जो किसी और को रंग सके 

थक चुकी हु में अब सबसे 

और कोई बात नही करनी मुझे 

मेरे हाल पर में जीलूगा  

कोइ और कोशिश नही करनी अब 

नहीं किसे कुछ कहना है मुझे 

बस और कितना दर्द देना चाहती है जिंदगी 

हर दर्द सहना है जिस भी मोड़ पर ले जाये 

हर मोड़ पर बरक़रार रहूगा में

चाहे कितनी भी धुप मिले 

हर धुप में जलुगा में 

कतरा कतरा जलुगा में 

अपनी हर एक ख्वाएश को दफनाऊगा में 

हार गया में खुद को साबित करते करते

अब नही है इतनी हिम्मत की 

किसी को समजा सकू 

ज़माने को साबित करना होता तो जरुरत ही नही है 

यहाँ तो अपने से ही घाव मिले है 

जो न कभी भर सकेगे ना ही कभी मिटेगे     

Radhe...