इश्क मुकम्बल हो जाये तो वो फिर इश्क कैसा
इश्क मुकम्बल हो जाये तो
वो फिर इश्क कैसा
दर्द हद से पार न हो तो
वो दर्द कैसा
पाव में पायल की जंजीर हो
और वो बेडीया न बने तो
जुल्म कैसा
इश्क में वफ़ा हो तो
बेवफा होना कैसा
तू ढाए सितम और में
बर्दाश न कर सकू
तो में आशिक कैसा
मीले चाहे कितनी अजीयत
फिर भी तेरा साथ ना दू
तो में तेरा दीवाना कैसा
तू बिन बोले तेरी बाते समज लू
तेरा दीवाना हु में ऐसा
तेरे जाने पर तेरी राह न तकु
तो में महबूब कैसा
आखे मीच के तेरा दीदार न पाउ तो
तेरा प्यार कैसा
तेरे दीदार से मेरा चेहरा ना खिले
तो ख्वाब कैसा
साथ होके भी लकीरों में ना ला सकू
तो मुकादर है कैसा
तू मुझे छोड़ के जाये और
में तुजे बदुवा दू
तो मेरा इश्क कैसा
इश्क का तमाशा ना बनाये
तो ये आवाम कैसी
बे दाग से दमन में दाग देदे
वो तक़दीर कैसी
Radhe...
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